एक मुलाक़ात : अमृता प्रीतम मैं चुप शान्त और अडोल खड़ी थी सिर्फ पास बहते समुन्द्र में तूफान था……फिर समुन्द्र को खुदा जाने क्या ख्याल आया उसने तूफान की एक पोटली सी बांधी मेरे हाथों में थमाई और हंस कर कुछ दूर हो गया हैरान थी…. पर उसका चमत्कार ले लिया पता था कि इस प्रकार की घटना कभी सदियों में होती है….. लाखों ख्याल आये माथे में झिलमिलाये पर खड़ी रह गयी कि उसको उठा कर अब अपने शहर में कैसे जाऊंगी? मेरे शहर की हर गली संकरी मेरे शहर की हर छत नीची मेरे शहर की हर दीवार चुगली सोचा कि अगर तू कहीं मिले तो समुन्द्र की तरह इसे छाती पर रख कर हम दो किनारों की तरह हंस सकते थे और नीची छतों और संकरी गलियों के शहर में बस सकते थे…. पर सारी दोपहर तुझे ढूंढते बीती और अपनी आग का मैंने आप ही घूंट पिया मैं अकेला किनारा किनारे को गिरा दिया और जब दिन ढलने को था समुन्द्र का तूफान समुन्द्र को लौटा दिया…. अब रात घिरने लगी तो तूं मिला है तूं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल मैं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल सिर्फ- दूर बहते समुन्द्र में तूफान है….. Amrita Pritam (b 1919) wrote only in Punjabi as she could barely read any other language. Sahir once invited her and her much younger partner Imroz to meet him in a hotel room. They ordered whiskey, sat and talked for a long time. At midnight, Amrita received a call from Sahir saying "There are still three glasses lying on the table, and by turn I am sipping from each of them, and writing Mere Saathi Khaali Jaam." She once wrote for Imroz, “I feel that the fourteen years that I spent pining for Sahir’s love were just a prelude to my passion for you….” Created by : Manish Gupta Asst. : Bhai Jaan (Archna, the maid) ©Active Illusions [Film.Bombay@gmail.com] Reproduction of any kind is prohibited without written permission